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हिंदी कहानियां - भाग 200

बड़े भुलक्कड़ दादाजी


बड़े भुलक्कड़ दादाजी बिन्नू के दादाजी को भूलने की बड़ी बीमारी है। दादी उनसे सेब लाने को कहती हैं और वह संतरे ले आते हैं। दादी टोकती हैं, तो हंसकर कहते हैं, “इस बार संतरों से काम चला लो। सेब अगली बार ला दूंगा।”  और जब अगली बार जाते हैं, तो अमरूद उठा लाते हैं। उनकी इस आदत से परेशान होकर दादी ने एक उपाय ढूंढ़ा है। जब वह उन्हें बाजार भेजती हैं, तो डायरी में सारा सामान लिख देती हैं। दादाजी जो सामान खरीद लेते हैं, उस पर निशान लगा लेते हैं। एक दिन बिन्नू ने दादाजी से कहा, “दादाजी, मुझे कॉपी और पेंसिल लेनी है। क्या आप मेरे साथ बाजार चलेंगे?” दादाजी को घूमना अच्छा लगता है। वह फौरन तैयार हो गए।  लेकिन गेट तक पहुंचते-पहुंचते वह ठहर गए। उन्होंने कहा, “जल्दबाजी में चप्पलें पहनकर निकल आया। जूते पहनना भूल गया। तुम यहीं रुको, मैं जूते पहनकर आता हूं।” यह कहकर दादाजी अंदर चले गए। पर जब उन्हें काफी देर हो गई, तो बिन्नू ने आवाज लगाई, “दादाजी, क्या मैं आकर कुछ मदद करूं?” अंदर से दादाजी की परेशान सी आवाज आई, “नहीं, ऐसी तो कोई जरूरत नहीं, पर मैं यह भूल गया कि क्या ढूंढ़ने आया था?” बिन्नू हंस पड़ा। उसने जाकर दादाजी को जूते पहनाए और साथ लेकर चल पड़ा। लेकिन गेट तक पहुंचकर दादाजी फिर ठिठक गए।  “अब क्या हुआ?” बिन्नू ने पूछा। “जूते तो पहन लिए, पर अपना चश्मा वहीं रख आया।” दादाजी दोबारा अंदर चले गए। बिन्नू ने उबासी लेकर सोचा, ‘अब फिर से पंद्रह मिनट लग जाएंगे।’ पर दादाजी ने ज्यादा देर नहीं लगाई। वह लौट आए। आंखों पर चश्मा चढ़ाए हुए। बिन्नू खुश हो गया। पर अभी दो कदम भी नहीं चले होंगे कि उन्हें फिर कुछ याद आया।  “अब क्या हुआ?” बिन्नू ने ऊबकर पूछा। “अरे, पेन और डायरी भी तो ले लूं। तुम्हारी दादी ने कुछ सामान मंगवाया था, वह भी लेता आऊंगा।”  दादाजी अंदर से पेन और डायरी लेकर लपकते हुए बाहर आए और बोले, “चलो, अब देर मत करो, फटाफट बाजार चलते हैं।” बाजार में खूब चहल-पहल थी। लोग खरीदारी करने में जुटे हुए थे। सब एक-दूसरे से बेखबर इधर-उधर आ-जा रहे थे।  दुकान की सीढि़यों पर कदम रखते-रखते दादाजी फिर ठिठक गए। “क्या फिर कुछ...?” बिन्नू ने निराशा से पूछा। दादाजी ने खिसियाकर सिर झुका लिया। अब दादाजी पर्स भूल आए थे। बिन्नू गाने लगा,  “अक्कड़-बक्कड़ बड़े भुलक्कड़, मेरे प्यारे दादाजी, हमको टॉफी दिलवाने का रखते याद न वादाजी। लेने जाते हैं जब सब्जी ले आते  हैं दही-बड़े, छड़ी सुलाते हैं बिस्तर पर खुद सो जाते खड़े-खड़े। ’

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